तुलनात्मक राजनीति एवं राजनीतिक संस्थाएं विषय विशेषकर हिन्दी-भाषी विश्वविद्यालयों में एक उभरता हुआ विषय है। हिन्दी में ऐसी कोई पाठ्य-पुस्तक उपलब्ध नहीं है जो कि स्नातकोत्तर कक्षा के विद्यार्थियों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। लेखक ने विषय की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए पुस्तक में विभिन्न विषयों को परम्परागत ढ़ांचे से हटकर एक नये रूप में उदाहरणों और रेखाचित्रों की सहायता से सरल व सुबोध शैली में प्रस्तुत किया है। अधिकांश उदाहरण विकासशील राज्यों और विशेषकर दक्षिण एशिया और भारत से लेकर विषय को सुरूचिपूर्ण बनााने का प्रयास किया गया है। प्रत्येक अध्याय में ‘विकासशील देशों’ और ‘साम्यवादी व्यवस्थाओं’ के शीर्षकों के अन्तर्गत सम्बन्धित विषय का विश्लेषण पुस्तक को सन्तुलित दृष्टिकोण उपलब्ध कराने में सहायक रहा है। पुस्तक विद्यार्थियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ विषय की गहराई में जाने की सामग्री भी उपलब्ध कराती है। पाठक को जहां-तहां स्वयं के मूल्यांकनात्मक निष्कर्ष निकालने के लिए भी प्रेरित किया गया है। निष्कर्ष यह है कि पुस्तक में हर विषय का आलोचनात्मक एवं विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से विवेचन करके पाठक को विषय के विभिन्न पक्षों का ज्ञान कराने की व्यवस्था की गई है।
प्रस्तुत पुस्तक विभिन्न भारतीय विश्वविधालयों के बी. ए. (ऑनर्स) तथा एम. ए. के विद्यार्थियों के लिए लिखी गई है।
प्रस्तुत पुस्तक विभिन्न भारतीय विश्वविधालयों के बी. ए. (ऑनर्स) तथा एम. ए. के विद्यार्थियों के लिए लिखी गई है।


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