शिक्षा एक सतत और विकासशील प्रक्रिया है लेकिन यह विकास उचित दिशा में हो इसके लिए दर्शन दिशा निर्देश करता है। दर्शन केवल चिन्तन का ही विषय नहीं अपितु अनुभूति का विषय है। शिक्षा समाज सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका स्वरूप दर्शन से तथा रूप समाजशास्त्र से सँवरता है। इन्हीं सभी तथ्यों पर विचार विमर्श इस पुस्तक में किया गया है। यह पुस्तक बी.ए., एम.ए. (शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.एड. कोर्स करने वाले विद्यार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।